Monday, September 20, 2010

यहीं पे था मेरा बचपन....................


यहीं पे था मेरा बचपन, यहीं कहीं पे था,
यहीं हंसा था,
यहीं कही पे रोया था,
यहीं दरख्तों क साये मैं,

थक क सोया था,
यहीं पे जुगनुओं से अपनी बात चलती थी,
वो हंसी जो हर पल साथ चलती थी,
यहीं पे था वो लड़कपन

यहीं कहीं पे था,
यहीं पे माँ मुझ को सीने लगाये रखती थी,
यहीं पे पापा ने इक बार कान खिंचा था,
शरारत किसी और की थी सजा मुझी थी मिली,

मैं कितनी देर खड़ा धुप मैं रहा तनहा,
तमाम यार मेरी खुश मेरी सजा पे थे ,
यहीं पे था वो लड़कपन यहीं कहीं पे था.

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